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प्रवीण संगीताचार्य (VII Year) - कत्थक (शास्त्र पाठ्यक्रम ) द्वितीय प्रश्नपत्र
1. निम्नलिखित नृत्य सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दों की विस्तृत व्याख्या, इनका स्पष्टीकरण तत्सम्बन्धी आलोचनाएं एवं स्पष्टीकरण - थाट, आमद, सलामी, निकास, तोड़ा, टुकड़ा, परन, गत, भाव, अनुभाव, विभाव, तत्कार, बोल, पल्टा, कविन्त, पढन्त, तिहाई, अदा, कसक, मसक, कटाक्ष, गत भाव, गत तोड़ा, मुख विलोम, लय, माश्रा, ताल, ठेका, आवृति, विभाग, सम, ताली, खाली, काल मार्ग, क्रिया, अंग, यदि, प्रस्तार, ग्रह, समृग्रह, कला, जाति, अंचित, अनुलोम, प्रतिलोम, अग्रल, अधोमुख शिर, आलोलित शिर, उदवाहित शिर, कम्पित शिर, परावृत शिर, सम शिर, धुत शिर, परिवाहित शिर, लाग.डाट।
2. कत्थक नृत्य का क्रमिक इतिहास, विकास, इसकी लोकप्रियता तथा इसके प्रारम्भिक आचार्यों के विषय में विस्तृत अध्ययन।
3. कत्थक नृत्य के विभिन्न घरानों, उनकी विशेषताओं तथा उनमें पारस्परिक भेदों का विस्तृत और तुलनात्मक अध्ययन। प्रत्येक घराने के नृत्याचार्यों का पूर्ण परिचय तथा उनकी विशेषताओं का आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन।
4. कत्थक नृत्य के वर्तमान युगीन सुप्रसिद्ध नृत्याचार्यों की विस्तृत जीवनी, विशेषताएं तथा उनकी वंशगत परम्परा का पूर्ण अध्ययन।
5. कत्थक नृत्य में कवित और ठुमरी का महत्व। उन ठुमरियों और कवित्तों में निहित रस और भाव का समुचित ज्ञान।
6. रूप सौन्दर्य का विस्तृत प्रयोगात्मक एवं आलोचनात्मक ज्ञान, चेहरा, होंठ, आंखें, कपोल, केश, नरम, त्वचन आदि की सज्जा का विस्तृत एवं सूक्ष्म अध्ययन। रूप सज्जा के विभिन्न उपकरण तथा आहार सम्बन्धी पूर्ण जानकारी।
7. रास नृत्य की उत्पत्ति तथा इसका क्रमिक इतिहास। इसकी शैली तथा मुद्राओं का ज्ञान। रास नृत्य और कत्थक नृत्य में परस्पर सम्बन्ध और भेद का पूर्ण ज्ञान। समाज में रास नृत्य का स्थान।
8. प्रथम से सप्रम वर्षों के पाठ्यक्रमों में निर्धारित समस्त तालों का पूर्ण परिचय तथा उनेक ठेके को विभिन्न प्रकार की सीधी एवं कठिन लयकारियों में ताललिपि में लिखने का अभ्यास।
9. भातखण्डे़ एवं विष्णु दिगम्बर ताललिपि पद्धतियों का पूर्ण तथा तुलनात्मक ज्ञान। पाश्चात्य ताललिपि पद्धति का साधारण ज्ञान। इन तीनों ताललिपि पद्धतियों का पारस्परिक तुलनात्मक अध्ययन।
10. ताल की उत्पत्ति, ताल और लय का नृत्य कला से सम्बन्ध।
11. भारतीय संस्कृति में नृत्य कला का स्थान।
12. लयकारी शब्द की व्याख्या। लय और लयकारी में भेद। नृत्य में लयकारी का महत्व। गणित द्वारा किसी भी ताल के ठेके की दुगुन, तिगुन, चौगुन, पंचगुन, आड़, कुआड़, बिहाड़ आदि प्रारम्भ करने का स्थान निश्चित करने का ज्ञान।
13. विभिन्न प्रकार के भारतीय ताल वाद्यों एवं उनकी वादन शैलियों का विस्तृत ज्ञान।
14. ताल रचना के सिद्धान्त एवं ताल के दस प्राण की पूर्ण जानकारी। ताल, अताल, सताल, शब्द, मूकताल आदि तालों के भेद।
15. नृत्य अभ्यास के नियम, सिद्धान्त तथा क्रम का विस्तृत अध्ययन। एक सफल नृत्यकार बनने के उपकरण एवं नियम पालन का ज्ञान।
16. लिपि शब्द की व्याख्या तथा संगीत में इसका महत्व। नृत्य सम्बन्धित समस्त बोलों, टुकड़ों, एवं परण आदि को सही और स्पष्ट रूप से लिपिबद्ध करने का विस्तृत ज्ञान। नृत्य सम्बन्धी एक आदर्श लिपि पद्धति के निर्माण पर सुझाव।
17. निम्न रागों का पूर्ण परिचय तथा इनमें ठुमरी, भजन आदि लिपिबद्ध करने का ज्ञान - खमाज, काफी, देश, भैरवी, पीलू, तिलक कामोद, तिलंग तथा झिंझोटी।
18. क्रियात्मक नृत्य सम्बन्धी विषयों पर लेख लिखने की पूर्ण क्षमता।