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कथकली-केरल
* मुखौटा नृत्य इसी से सम्बंधित है ,( केवल पुरुष कलाकारों द्वारा)
* केरल के दक्षिण - पश्चिमी राज्य का एक समृद्ध और फलने फूलने वाला नृत्य कथकली यहां की परम्परा है।
* कथकली का अर्थ है एक कथा का नाटक या एक नृत्य नाटिका।
* कथा का अर्थ है कहानी, यहां अभिनेता रामायण और महाभारत के महाग्रंथों और पुराणों से लिए गए चरित्रों को अभिनय करते हैं।
* कथकली अभिनय, 'नृत्य' (नाच) और 'गीता' (संगीत) तीन कलाओं से मिलकर बनी एक संपूर्ण कला है।
* यह एक मूकाभिनय है, जिसमें अभिनेता बोलता एवं गाता नहीं है, लेकिन बेहद संवेदनशील माध्यमों जैसे- हाथ के इशारे और चेहरे की भावनाओं के सहारे अपनी भावनाओं की सुगम अभिव्यक्ति देता है।
* कथकली नाटकीय और नृत्य कला दोनों है। परंतु मुख्य तौर पर यह नाटक है। यह साधारण नाटकीय कला से कहीं ज्यादा अच्छा प्रस्तुतीकरण है।
* यह यथार्थवादी कला नहीं है, लेकिन अपनी कल्पनाशीलता के चलते यह 'भरत नाट्यशास्त्र' के समानांनतर है।
* इसमें ऑर्केस्ट्रा दो मुखर संगीतकारों द्वारा बनाया जाता है, इनमें से एक 'चेंगला' नामक यंत्र के साथ गीत की तैयारी करता है और दूसरा 'झांझ' और 'मंजीरा' के साथ मिलकर 'इलाथम' नामक जोड़ी की रचना करता है, जिसमें चेन्दा और मदालम भी प्रमुख स्थान रखते हैं।
* 'चेन्दा' एक बेलनाकार ढोल होता है, जो उंची लेकिन मीठी आवाज निकालता है, जबकि 'मदालम' मृदंग का बडा रूप होता है।