मुसहरी नाच

'मूस' यानि चूहे का शिकार करने वाली 'मुसहर' जाति पूर्वांचल की एक विचित्र जाति है। ये गांवों के किनारे अलग बस्ती बनाकर रहते हैं और भोर ही में 'सवरी' (एक विशेष प्रकार का चूहा मारने का औजार) लेकर खेत खलिहान में पूरे परिवार के साथ निकल जाते हैं। खेत खलिहानों में बिल के भीतर चूहों द्वारा एकत्र किये गए अनाज को उसमें पानी भरकर निकालते हैं। इनका एक पंथ दो काज हो जाता है। अर्थात एक ही गोटी से दो शिकार-चूहा और अनाज। वे दिनभर की इस कमाई को लेकर आते और गांजा का दम लगाकर झंडे गाड़कर 'ढोल' और 'हुडुक' बजाकर झूमकर नाचते हैं। यह हुडुक वाद्य 'गोहटी' के चमड़े से वे स्वयं बनाते हैं।

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