गरबा नृत्य

गरबा गुजरात, राजस्थान और मालवा प्रदेशों में प्रचलित एक लोकनृत्य जिसका मूल उद्गम गुजरात है। आजकल इसे आधुनिक नृत्यकला में स्थान प्राप्त हो गया है। इस रूप में उसका कुछ परिष्कार हुआ है फिर भी उसका लोकनृत्य का तत्व अक्षुण्ण है। 

आधुनिक गरबा/ डांडिया रास से प्रभावीत एक नृत्य है जिसे परंपरागत पुरषों तथा महिलाओं द्वारा किया जाता है। इन दोनों नृत्यों के विलय से आज जो उच्च उर्जा़ नृत्य का गठन हुआ है, उसे हम आज देख रहे है। आम तौर पर पुरुष और महिलाये रंगीन वेश-भूषा पहने हुए गरबा और डांडिया का प्रदर्शन करते हैं। लडकियाँ चनिया-चोली पहनती हैं और साथ मे विविध प्रकार के आभूषण पहनती हैं, तथा लडके गुजराती केडिया पहन कर सिर पर पगडी बांधते हैं। प्राचीन काल मे लोग गरबा करते समय सिर्फ दो ताली बजाते थे, लेकिन आज आधुनिक गरबा में नई तरह की शैलियों का उपयोग होता है, जिसमें नृत्यकार दो ताली, छः ताली, आठ ताली, दस ताली, बारह ताली, सोलह तालियाँ बजा कर खेलते हैं। गरबा नृत्य सिर्फ नवरात्री के त्यौहार में ही नहीं किया जाता है बल्कि शादी के महोत्सव और अन्य खुशी के अवसरों पर भी किया जाता है।

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जनजातीय और लोक संगीत

जनजातीय और लोक संगीत

जनजातीय और लोक संगीत उस तरीके से नहीं सिखाया जाता है जिस तरीके से भारतीय शास्‍त्रीय संगीत सिखाया जाता है । प्रशिक्षण की कोई औपचारिक अवधि नहीं है। छात्र अपना पूरा जीवन संगीत सीखने में अर्पित करने में समर्थ होते हैं । ग्रामीण जीवन का अर्थशास्‍त्र इस प्रकार की बात के लिए अनुमति नहीं देता । संगीत अभ्‍यासकर्ताओं को शिकार करने, कृषि अथवा अपने चुने हुए किसी भी प्रकार का जीविका उपार्जन कार्य करने की इजाजत है। Read More : जनजातीय और लोक संगीत about जनजातीय और लोक संगीत

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