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अहीरों का नाच
अहीरों का नाच (फरुवाही): अहीर स्वयं में एक संस्कृति है। यह वीरों की संस्कृति है। लोरिकी, बिरहा, गड़थैया, कुर्री-फुर्री-कलैया, मानो जैसे कि वे पेट से ही सीख कर आते हैं। परन्तु ऐसा माना जाता है कि अहीर 'उज़बक' होते है और उनकी पत्नियां बुद्धिमती होती हैं। पुरुष डोर, चौरासी, शहनाई, घुँघरू पहनकर हाथ में धुधुकी लेकर धोती कुरता पहनकर सिर पर पगड़ी बांधकर उछाल कूद करते हुए गीत की पंक्तियाँ टेरते हैं। ये बीच- बीच में 'हा- हा', 'हू-हू' की आवाज़ करते हैं। कलैया मरते हैं। नाचते समय ये 'लोरकी गाथा' की पंक्तियाँ अथवा 'बिरहा' की पंक्तियाँ दुहराते हैं।
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