सरहुल नृत्य

सरहुल नृत्य छत्तीसगढ़ राज्य में सरगुजा, जशपुर और धरमजयगढ़ तहसील में बसने वाली उरांव जाति का जातीय नृत्य है। इस नृत्य का आयोजन चैत्र मास की पूर्णिमा को रात के समय किया जाता है। यह नृत्य एक प्रकार से प्रकृति की पूजा का आदिम स्वरूप है।

नृत्य का आयोजन

आदिवासियों का यह विश्वास है कि साल वृक्षों के समूह में, जिसे यहाँ ‘सरना’ कहा जाता है, उसमे महादेव निवास करते हैं। महादेव और देव पितरों को प्रसन्न करके सुख शांति की कामना के लिए चैत्र पूर्णिमा की रात को इस नृत्य का आयोजन किया जाता है। आदिवासियों का बैगा सरना वृक्ष की पूजा करता है। वहाँ घड़े में जल रखकर सरना के फूल से पानी छिंचा जाता है। ठीक इसी समय सरहुल नृत्य प्रारम्भ किया जाता है। सरहुल नृत्य के प्रारंभिक गीतों में धर्म प्रवणता और देवताओं की स्तुति होती है, लेकिन जैसे-जैसे रात गहराती जाती है, उसके साथ ही नृत्य और संगीत मादक होने लगता है। शराब का सेवन भी इस अवसर पर किया जाता है। यह नृत्य प्रकृति की पूजा का एक बहुत ही आदिम रूप है।

 

जनजातीय और लोक संगीत

जनजातीय और लोक संगीत

जनजातीय और लोक संगीत उस तरीके से नहीं सिखाया जाता है जिस तरीके से भारतीय शास्‍त्रीय संगीत सिखाया जाता है । प्रशिक्षण की कोई औपचारिक अवधि नहीं है। छात्र अपना पूरा जीवन संगीत सीखने में अर्पित करने में समर्थ होते हैं । ग्रामीण जीवन का अर्थशास्‍त्र इस प्रकार की बात के लिए अनुमति नहीं देता । संगीत अभ्‍यासकर्ताओं को शिकार करने, कृषि अथवा अपने चुने हुए किसी भी प्रकार का जीविका उपार्जन कार्य करने की इजाजत है। Read More : जनजातीय और लोक संगीत about जनजातीय और लोक संगीत

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