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भाव संगीत (III Year) - (क्रियात्मक पाठ्यक्रम )
1. स्वर ज्ञान में विशेष उन्नति। तीनों सप्तकों के शुद्ध और विकृत स्वरों का समुचित अभ्यास। कठिन स्वर समूहों को गाना और उन्हें पहचानना।
2. तानपुरा मिलाने का ज्ञान।
3. लय ज्ञान में विशेष उन्नति, दुगुन, तिगुन और चौगुन लयों का अधिक स्पष्ट और पूर्ण ज्ञान।
4. तोड़ी, मारवा और पिछले वर्षों के सभी थाटों में कुछ कठिन अलंकारों का पूर्ण अभ्यास। इस वर्ष गले की तैयारी और सफाई पर विशेष ध्यान होना चाहिए।
5. पूर्वलगन कण, अनुलगन कण, खटका, निश्चित मींड़, अनिश्चित मींड़, कण युक्त मींड़ तथा विशिष्ट मींड़ के अन्य प्रकारों को निकालने का विशेष अभ्यास। कम्पन, मुर्की, दाना, दोनेदार टुकड़े, गिटकिरी और गमक निकालने का अभ्यास।
6. जौनपुरी, पीलू, तिलक कामोद, कालिंगड़ा, सोहनी, मालकौश, पूर्वी, तिलंग और हमीर का स्वरूप ज्ञान, इनका स्वर विस्तार और एक.एक छोटा खयाल। इनमें से किन्हीं चार रागों में छोटा खयाल, आलाप, तान व सरल बोलतान के साथ तैयार होना चाहिए और किसी एक राग में बड़ा खयाल आलाप, तान आदि सहित होना चाहिए।
7. जौनपुरी, दुर्गा, पीलू, हमीर में एक.एक सुन्दर भजन या गीत। भजन या गीतों के भाव और रागों की शुद्धता के अनुसार स्वर रचना होनी चाहिए।
8. इस वर्ष के किसी एक राग में एक धु्रपद को ठाह, दुगुन, तिगुन और चौगुन लयों में गाने का अभ्यास तथा एक तराना।
9. प्रथम तथा द्वितीय वर्ष के रागों में दिये हुए भजन या गीतों को स्वयं रचना करके गाने का प्रारम्भिक अभ्यास।
10. भैरवी, काफी, खमाज, देश और तिलंग में से किसी एक में ठुमरी अंग से सरल बोल बनाकर गाने का अभ्यास।
11. लोकगीत के प्रकारों को कुशलतापूर्वक गाने का अभ्यास।
12. सूर, मीरा, तुलसी, कबीर, नानक, ब्रह्मानन्द, जुगल प्रिया तथा अन्य भक्त कवियों के भजन और आधुनिक कवियों के गीत। भाव प्रदर्शन की दृष्टि से गायनशैली स्तर अच्छा होना चाहिए।
13. दीपचन्दी, धमार, जत और अद्धा तालों का ज्ञान और इनकी ठाह, दुगुन और चौगुन ताली देकर बोलना।
14. तीनताल, दादरा और कहरवा के ठेके को तबले पर बजाने का अभ्यास।
15. कठिन स्वर समूहों द्वारा राग पहचान।