पंडित भीमसेन गुरुराज जोशी

पंडित भीमसेन जोशी को बचपन से ही संगीत का बहुत शौक था। वह किराना घराने के संस्थापक अब्दुल करीम खान से बहुत प्रभावित थे। 1932 में वह गुरु की तलाश में घर से निकल पड़े। अगले दो वर्षो तक वह बीजापुर, पुणे और ग्वालियर में रहे। उन्होंने ग्वालियर के उस्ताद हाफिज अली खान से भी संगीत की शिक्षा ली। लेकिन अब्दुल करीम खान के शिष्य पंडित रामभाऊ कुंडालकर से उन्होने शास्त्रीय संगीत की शुरूआती शिक्षा ली। घर वापसी से पहले वह कलकत्ता और पंजाब भी गए। इसके पहले सात साल पहले शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खान को भारत रत्न से अलंकृत किया गया था। वर्ष 1936 में पंडित भीमसेन जोशी ने जाने-माने खयाल गायक थे। वहाँ उन्होंन Read More : पंडित भीमसेन गुरुराज जोशी about पंडित भीमसेन गुरुराज जोशी

अलंकार- भारतीय शास्त्रीय संगीत

कुछ विशेष नियमो से बँधे हुए स्वर-समुदाय को अलंकार या पल्टा कहते है । Read More : अलंकार- भारतीय शास्त्रीय संगीत about अलंकार- भारतीय शास्त्रीय संगीत

नई स्वरयंत्र की सूजन

नई स्वरयंत्र की सूजन(मानव गला)

कारण :-

अधिक सर्दी लगना, पानी में अधिक भींगना, अधिक देर तक गाना गाना, गले में धूल का कण जमना, धुंआ मुंह में जाना, अधिक जोर से बोलना तथा अचानक मौसम परिवर्तन के कारण यह रोग होता है।

लक्षण :-

इस रोग में स्वरयंत्र की श्लैष्मिक झिल्ली फूल जाती है और उससे लसदार श्लेष्मा निकलने लगता है। गला कुटकुटाना और जलन होना, कड़ा श्लेष्मा निकलना, कुत्ते की तरह आवाज होना, सूखी खांसी आना, आवाज खराब होना या गला बैठ जाना, बुखार होना, प्यास अधिक लगना, भूख न लगना, सांस लेने में कष्ट होना आदि इस रोग के मुख्य लक्षण है। Read More : नई स्वरयंत्र की सूजन about नई स्वरयंत्र की सूजन

माइक्रोफोन के प्रकार :

माइक्रोफोन के भी अनेक प्रकार होते है, लेकिन इनके काम करने के तरीके और इनकी आवाज़ की गुणवत्ता को ध्यान में रख कर इन्हें तीन भागो में बांटा गया है. जो निम्नलिखित है.

1. Shotgun माइक्रोफोन : ये एक बूम पोल ( Boom Pole ) और बूम स्टैंड ( Boom Stand ) का बना होता है. इन माइक्रोफोन का इस्तेमाल बिलकुल सही ऑडियो को निकलने के लिए किया जाता है, इनमे आसपास हो रही हलचल या फिर शोर नही आता बल्कि ये सिर्फ आपके द्वारा इसमें बोली गई आवाज़ को ही एनालॉग डाटा के रूप में लेता है. Read More : माइक्रोफोन के प्रकार : about माइक्रोफोन के प्रकार :

संगीत के स्वर

संगीत के स्वर

टिप्पणी –

श्रीमती विमला मुसलगाँवकर की पुस्तक ‘भारतीय संगीत शास्त्र का दर्शनपरक अनुशीलन’ में पृष्ठ १३९ पर उल्लेख है कि विशुद्धि चक्र की स्थिति कण्ठ में है। यह सोलह दल वाला होता है। यह भारती देवी(सरस्वती) का स्थान है। इसके पूर्वादि दिशाओं वाले दलों पर ध्यान का फल क्रमशः १-प्रणव, २-उद्गीथ, ३-हुंफट्, ४- वषट्, ५-स्वधा(पितरों के हेतु), ६-स्वाहा(देवताओं के हेतु), ७-नमः, ८-अमृत, ९-षड्ज, १०-ऋषभ, ११-गान्धार, १२-मध्यम, १३-पञ्चम, १४- धैवत, १५-निषाद, १६-विष – ये सोलह फल होते हैं—

कण्ठेऽस्ति भारतीस्थानं विशुद्धिः षोडशच्छदम्॥ Read More : संगीत के स्वर about संगीत के स्वर

भरतनाट्यम (III Year) - (क्रियात्मक पाठ्यक्रम )

1. अलारिपु, यतिस्वरम् तथा शब्दम् को बसंत, भैरवी तथा कल्याणी किसी एक राग में आदि ताल आठ मात्रा में करने का अभ्यास।
2. कर्नाटक ताल पद्धति के चतुस्त्र ताल, आदि ताल, रूपकम् ताल, त्रिस्त्रम् ताल को हस्त द्धारा दक्षिण भारतीय पद्धति में ताली लगाकर बताने का अभ्यास।
3. सिर संचालन का श्लोक सहित ज्ञान - सम शिर, उद्धाहित शिर, अधमुख शिर, आलोलित शिर, घूत शिर, कम्पित शिर, परावृत शिर, पारिवाहित शिर।
4. दृष्टि भेद का श्लोक सहित ज्ञान - आलोकित दृष्टि, सांची दृष्टि, प्रलोकित दृष्टि, मीलित दृष्टि, अल्लोकित दृष्टि, अनुव्रत दृष्टि, अवलोकित दृष्टि।
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ओंकारनाथ ठाकुर (1897–1967) भारत के शिक्षाशास्त्री,

ओंकारनाथ ठाकुर (1897–1967) भारत के शिक्षाशास्त्री,

ओंकारनाथ ठाकुर (1897–1967) भारत के शिक्षाशास्त्री, संगीतज्ञ एवं हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीतकार थे। उनका सम्बन्ध ग्वालियर घराने से था। Read More : ओंकारनाथ ठाकुर (1897–1967) भारत के शिक्षाशास्त्री, about ओंकारनाथ ठाकुर (1897–1967) भारत के शिक्षाशास्त्री,

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