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बहार
राग बहार, वसंत व शरद ऋत में गाया जाने वाला अत्यंत मीठा राग है। खटके और मुरकियों से महफिल में रंगत जमती है। राग बहार का मध्यम स्वर उसका प्राण स्वर है। अवरोह में मध्यम पर बार बार न्यास किया जाता है। राग बहार का निकटतम राग है राग शहाना-कान्हडा, जिसमें पंचम स्वर पर न्यास किया जाता है। इस राग के मिश्रण से बनाये गये कई राग प्रचिलित हैं यथा - बसंत-बहार, भैरव-बहार, मालकौन्स-बहार, अडाना-बहार इत्यादी।
अवरोह में गंधार वक्र करके लिया जाता है जैसे - ग१ म रे सा ; प म ग१ म। इस राग में रिषभ स्वर कभी-कभी आरोह में इस तरह से उपयोग में लिया जाता है - ग१ म ध नि सा' ; नि रे' सा' ; ध नि सा' रे' ग१' ; रे' ग१' सा' रे' नि सा' ; नि सा' रे' रे' सा' नि सा' ; सा' नि१ ध नि सा' ; नि१ प म ; ग१ म रे सा। यह उत्तरांग प्रधान और चंचल प्रकृति का राग है। श्रंगार और भक्ति रस से यह राग परिपूर्ण है। इस राग में ध्रुवपद, ख्याल, तरानें इत्यादी गाये जाते हैं। यह स्वर संगतियाँ राग बहार का रूप दर्शाती हैं -
रे सा ,नि सा म ; प म ग१ म ; नि१ प म ; म नि१ ध नि सा' ; नि१ प म ;
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