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मारू बिहाग
राग मारूबिहाग बहुत ही सुन्दर राग है। म ग रे सा गाते समय रिषभ को सा का स्पर्श देना चहिये। जैसे इस स्वर संगति मे दर्शाया गया है -
,नि सा ग म् ग रे सा ; ग म् प नि ; नि सा' ; सा' नि ध प नि सा' ध प ; म् ग म् ग रे सा ; सा म म ग ; प ध प म् ; ग म् ग रे सा ;
राग मारू बिहाग के संक्षिप्त परिचय के साथ आज सरगम पर प्रस्तुत हैं शुभा मुद्गल ( मुदगल) के स्वर मे सावनी झूला । झूला ,कजरी आदि विधायें हिन्दुस्तानी संगीत मे उपशास्त्रीय अंग के रूप मे जाने जाते हैं । कजरी के मूलतः तीन रूप हैं- बनारसी, मिर्जापुरी और गोरखपुरी । पं छन्नूलाल मिश्र,शोभा गुर्टू,गिरिजा देवी जैसे दिग्गज ,इस क्षेत्र के जाने माने हस्ताक्षर हैं । कजरी के बोलो मे जहाँ एक ओर नायिका के विरह का वर्णन होता है ,झूला मे वहीं अधिकतर राधा कृष्ण के रास व श्रंगार से संबन्धित बोलों का समावेश होता है ।
राग मारू बिहाग का संक्षिप्त परिचय-
थाट-कल्याण
गायन समय-रात्रि का द्वितीय प्रहर
जाति-ओडव-सम्पूर्ण (आरोह मे रे,ध स्वर वर्जित हैं)
विद्वानों को इस राग के वादी तथा संवादी स्वरों मे मतभेद है-
कुछ विद्वान मारू बिहाग मे वादी स्वर-गंधार व संवादी निषाद को मानते है इसके विपरीत अन्य संगीतज्ञ इसमे वादी स्वर पंचम व संवादी स्वर षडज को उचित ठहराते हैं ।
प्रस्तुत राग मे दोनो प्रकार के मध्यम स्वरों ( शुद्ध म व तीव्र म ) का प्रयोग होता है । शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयुक्त होते हैं ।
मारू बिहाग आधुनिक रागों की श्रेणी मे आता है। इसके रचयिता उ0 स्वर्गीय अल्लादिया खां साहब माने जाते हैं
इस राग के समप्रकृति राग -बिहाग,कल्याण व मार्ग बिहाग हैं ।
मारू बिहाग का आरोह,अवरोह पकड़-
आरोह-नि(मन्द्र) सा म ग,म(तीव्र)प,नि,सां ।
अवरोह-सां,नि ध प,म(तीव्र)ग,म(तीव्र)ग रे,सा ।
पकड़-प,म(तीव्र)ग,म(तीव्र)ग रे,सा,नि(मन्द्र)सा म ग,म(तीव्र)प,ग,म(तीव्र)ग,रे सा ।
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