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रामदासी मल्हार
यह एक बहुत ही मधुर लेकिन अप्रसिद्ध राग है। यह राग शहंशाह अकबर के दरबार गायक श्री रामदास जी द्वारा निर्मित है। दोनों गंधार लगने के कारण यह सभी मल्हार के प्रकारों से भिन्न हो जाता है। अवरोह में कोमल गंधार वक्र रूप से लगाया जाता है जैसे- प ग म रे सा ; और आलाप और तानों का अंत इन्ही स्वरों से होता है। इस राग में मध्यम-रिषभ (म-रे), रिषभ-पंचम (रे-प) और निषाद-पंचम (नि-प) की संगति होती है।
इस राग का विस्तार मध्य और तार सप्तक में किया जा सकता है। इस राग की प्रकृति शांत और गंभीर है। यह स्वर संगतियाँ राग रामदासी मल्हार का रूप दर्शाती हैं -
सा म रे प ; प ग१ ग१ म रे सा ; सा रे ग ग म ; म ग म ; (नि१)प ग१ ग१ म ; रे सा ; म रे प ; म प ध नि सा' ; सा' नि१ ध नि१ प ; म प ध नि१ प ; ध प म ग म ; (नि१)प ग१ ग१ म रे सा;
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