भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है भारतीय शास्त्रीय संगीत।

भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है भारतीय शास्त्रीय संगीत।

भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है भारतीय शास्त्रीय संगीत। आज से लगभग ३००० वर्ष पूर्व रचे गए वेदों को संगीत का मूल स्रोत माना जाता है। ऐसा मानना है कि ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को संगीत वरदान में दिया था। चारों वेदों में, सामवेद के मंत्रों का उच्चारण उस समय के वैदिक सप्तक या समगान के अनुसार सातों स्वरों के प्रयोग के साथ किया जाता था।
गुरू शिष्य परंपरा के अनुसार, शिष्य को गुरू से वेदों का ज्ञान मौखिक ही प्राप्त होता था व उन में किसी प्रकार के परिवर्तन की संभावना से मनाही थी। इस तरह प्राचीन समय में वेदों व संगीत का कोई लिखित रूप न होने के कारण उनका मूल स्वरूप लुप्त होता गया। भरत मुनि द्वारा रचित भरत नाट्यशास्त्र, भारतीय संगीत के इतिहास का प्रथम लिखित प्रमाण माना जाता है। इसकी रचना के समय के बारे में कई मतभेद हैं। आज के भारतीय शास्त्रीय संगीत के कई पहलुओं का उल्लेख इस प्राचीन ग्रंथ में मिलता है।
भरत् नाट्य शास्त्र के बाद शारंगदेव रचित संगीत रत्नाकर, ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। बारहवीं सदी के पूर्वाद्ध में लिखे सात अध्यायों वाले इस ग्रंथ में संगीत व नृत्य का विस्तार से वर्णन है।
संगीत रत्नाकर में कई तालों का उल्लेख है व इस ग्रंथ से पता चलता है कि प्राचीन भारतीय पारंपरिक संगीत में अब बदलाव आने शुरू हो चुके थे व संगीत पहले से उदार होने लगा था। १००० वीं सदी के अंत तक, उस समय प्रचलित संगीत के स्वरूप को प्रबंध कहा जाने लगा। प्रबंध दो प्रकार के हुआ करते थे... निबद्ध प्रबंध व अनिबद्ध प्रबंध। निबद्ध प्रबंध को ताल की परिधि में रह कर गाया जाता था जबकि अनिबद्व प्रबंध बिना किसी ताल के बंधन के, मुक्त रूप में गाया जाता था। प्रबंध का एक अच्छा उदाहरण है जयदेव रचित गीत गोविंद।
युग परिवर्तन के साथ संगीत के स्वरूप में भी परिवर्तन आने लगा मगर मूल तत्व एक ही रहे। मुगल शासन काल में भारतीय संगीत फ़ारसी व मुसलिम संस्कृति के प्रभाव से अछूता न रह सका। उत्तर भारत में मुगल राज्य ज़्यादा फैला हुआ था जिस कारण उत्तर भारतीय संगीत पर मुसलिम संस्कृति व इस्लाम का प्रभाव ज़्यादा महसूस किया जा सकता है। जबकि दक्षिण भारत में प्रचलित संगीत किसी प्रकार के बाहरी प्रभाव से अछूता ही रहा। इस तरह भारतीय संगीत का दो भागों में विभाजन हो गया:
१) उत्तर भारतीय संगीत या हिन्दुस्तानी संगीत 
२) कर्नाटक शैली।
उत्तर भारतीय संगीत में काफ़ी बदलाव आए। संगीत अब मंदिरों तक सीमित न रह कर शहंशाहों के दरबार की शोभा बन चुका था। इसी समय कुछ नई शैलियॉं भी प्रचलन में आईं जैसे ख़याल, ग़जल आदि और भारतीय संगीत का कई नए वाद्यों से भी परिचय हुआ जैसे सरोद, सितार इत्यादि।
बाद में सूफ़ी आंदोलन ने भी भारतीय संगीत पर अपना प्रभाव जमाया। आगे चलकर देश के विभिन्न हिस्सों में कई नई पद्धतियों व घरानों का जन्म हुआ। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान कई नए वाद्य प्रचलन में आए। आम जनता में भी प्रसिद्ध आज का वाद्य हारमोनियम, उसी समय प्रचलन में आया। इस तरह भारतीय संगीत के उत्थान व उसमें परिवर्तन लाने में हर युग का अपना महत्वपूर्ण योगदान रहा।
भारतीय शास्त्रीय संगीत का आधार:
भारतीय शास्त्रीय संगीत आधारित है स्वरों व ताल के अनुशासित प्रयोग पर।सात स्वरों व बाईस श्रुतियों के प्रभावशाली प्रयोग से विभिन्न तरह के भाव उत्पन्न करने की चेष्टा की जाती है। सात स्वरों के समुह को सप्तक कहा जाता है। भारतीय संगीत सप्तक के ये सात स्वर इस प्रकार हैं
षडज (सा), ऋषभ(रे), गंधार(ग), मध्यम(म), पंचम(प), धैवत(ध), निषाद(नि)।
सप्तक को मूलत: तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है...मन्द्र सप्तक़, मध्य सप्तक व तार सप्तक।अर्थात सातों स्वरों को तीनों सप्तकों में गाया बजाया जा सकता है।षड्ज व पंचम स्वर अचल स्वर कहलाते हैं क्योंकि इनके स्थान में किसी तरह का परिवर्तन नहीं किया जा सकता और इन्हें इनके शुद्ध रूप में ही गाया बजाया जा सकता है जबकि अन्य स्वरों को उनके कोमल व तीव्र रूप में भी गाया जाता है। इन्हीं स्वरों को विभिन्न प्रकार से गूॅंथ कर रागों की रचना की जाती है।
राग क्या हैं
राग संगीत की आत्मा हैं, संगीत का मूलाधार। राग शब्द का उल्लेख भरत नाट््य शास्त्र में भी मिलता है। रागों का सृजन बाईस श्रुतियों के विभिन्न प्रकार से प्रयोग कर, विभिन्न रस या भावों को दर्शाने के लिए किया जाता है। प्राचीन समय में रागों को पुरूष व स्त्री रागों में अर्थात राग व रागिनियों में विभाजित किया गया था।सिऱ्फ यही नहीं, कई रागों को पुत्र राग का भी दर्जा प्राप्त था।उदाहरणत: राग भैरव को पुरूष राग, और भैरवी, बिलावली सहित कई अन्य रागों को उसकी रागिनियॉं तथा राग ललित, बिलावल आदि रागों को इनके पुत्र रागों का स्थान दिया गया था।बाद में आगे चलकर पं विष्णु नारायण भातखंडे ने सभी रागों को दस थाटों में बॉंट दिया।अर्थात एक थाट से कई रागों की उत्पत्ति हो सकती थी। अगर थाट को एक पेड़ माना जाए व उससे उपजी रागों को उसकी शाखाओं के रूप में देखा जाए तो गलत न होगा। उदाहरणत: राग शंकरा, राग दुर्गा, राग अल्हैया बिलावल आदि राग थाट बिलावल से उत्पन्न होते हैं। थाट बिलावल में सभी स्वर शुद्ध माने गए हैं अत: तकनीकी दृष्टि से इस थाट से उपजे सभी रागों में सारे स्वर शुद्ध प्रयोग किए जाने चाहिए। मगर दस थाटों के इस सिद्धांत के बारे में कई मतांतर हैं क्योंकि कुछ राग किसी भी थाट से मेल नहीं खाते मगर उन्हें नियमरक्षा हेतु किसी न किसी थाट के अंतर्गत सम्मिलित किया जाता है।
किसी भी राग में ज़्यादा से ज़्यादा सात व कम से कम पॉंच स्वरों का प्रयोग करना ज़रूरी है।इस तरह रागों को मूलत: ३ जातियों में विभाजित किया जा सकता है...
१) औडव जाति जहॉं राग विशेष में पॉंच स्वरों का प्रयोग होता हो 
२) षाडव जाति जहॉं राग में छ: स्वरों का प्रयोग होता हो
३) संपूर्ण जाति जहॉं राग में सभी सात स्चरों का प्रयोग किया जाता हो।
राग के स्वरूप को आरोह व अवरोह गाकर प्रदर्शित किया जाता है जिसमें राग विशेष में प्रयुक्त होने वाले स्वरों को क्रम में गाया जाता है।
उदाहरण के लिए राग भूपाली का आरोह कुछ इस तरह है:
सा रे ग प ध सा।
किसी भी राग में दो स्वरों को विशेष महत्व दिया जाता है।इन्हें वादी स्वर व संवादी स्वर कहते हैं। वादी स्वर को राग का राजा भी कहा जाता है क्योंकि राग में इस स्वर का बहुतायत से प्रयोग होता है। दूसरा महत्वपूर्ण स्वर है संवादी स्वर जिसका प्रयोग वादी स्वर से कम मगर अन्य स्वरों से अधिक किया जाता है। इस तरह किन्हीं दो रागों में जिनमें एक समान स्वरों का प्रयोग होता हो, वादी और संवादी स्वरों के अलग होने से राग का स्वरूप बदल जाता है। उदाहरणत: राग भूपाली व देशकार में सभी स्वर समान हैं मगर वादी व संवादी स्वर अलग होने के कारण इन रागों में आसानी से फ़र्क बताया जा सकता है।
हर राग में एक विशेष स्वर समुह के बार बार प्रयोग से उस राग की पहचान दर्शायी जाती है। जैसे राग हमीर में 'ग म ध' का बार बार प्रयोग किया जाता है और ये स्वर समूह राग हमीर की पहचान हैं।
मुगल़कालीन शासन के दौरान ही शायद रागों के गाने बजाने का निर्धारित समय कभी प्रचलन में आया। जिन रागों को दोपहर के बारह बजे से मध्यरात्रि तक गाया बजाया जाता था उन्हें पूर्व राग कहा गया और मध्यरात्रि से दोपहर के बीच गाए बजाए जाने वाले रागों को उत्तर राग कहा गया। कुछ राग जिन्हें भोर या संध्याकालीन समय में गाया जाता था उन्हें संधिप्रकाश राग कहा गया। यही नहीं कुछ राग ऋतुप्रधान भी माने गए। जैसे राग मेघमल्हार वर्षा ऋतु में गाया जाने वाला राग है। इसी तरह राग बसंत को बसंत ऋतु में गाए जाने की प्रथा है।
हमारी संस्कृति का एक स्तंभ भारतीय शास्त्रीय संगीत, जीवन को संवारने और सुरुचिपूर्ण ढंग से जीने की कला है। यह आधार है हर तरह के संगीत का साथ ही ऐसी गरिमामयी धरोहर है जिससे लोक और लोकप्रिय संगीत की अनेक धाराएँ निकलती हैं जो न सिर्फ हमारे तीज त्योहारों में राग रंग भरती हैं बल्कि हमारे विभिन्न संस्कारों और अवसरों में भी उल्लासमय बनाते हुए अनोखी रौनक प्रदान करती हैं।

 

Vote: 
No votes yet

राग परिचय

शास्त्रीय नृत्य
भारतीय नृत्य कला

नाट्य शास्त्रानुसार नृतः, नृत्य, और नाट्य में तीन पक्ष हैं –

राग भीमपलास और भीमपलास पर आधारित गीत

भारतीय शास्त्रीय संगीत का आधार:

पंडित भीमसेन गुरुराज जोशी

जयपुर- अतरौली घराने की देन हैं एक से बढ़कर एक कलाकार

वेद में एक शब्द है समानिवोआकुति

राग परिचय
स्वर मालिका तथा लिपि

रागों मे जातियां

कुछ रागों की प्रकृति इस प्रकार उल्लेखित है-

खर्ज और ओंकार का अभ्यास क्या है ?

स्वन या ध्वनि भाषा की मूलभूत इकाई हैक्या है ?

ठुमरी : इसमें रस, रंग और भाव की प्रधानता होती है

राग रागिनी पद्धति

राग दरबारी कान्हड़ा

राग 'भैरव':रूह को जगाता भोर का राग

रागांग राग वर्गीकरण से अभिप्राय

राग क्या हैं

क्या हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में भगवान शंकर को समर्पित भी है कोई राग?

संगीत में बड़ी ताक़त है - सलीम-सुलेमान

संगीत के स्वर

संगीत और हमारा जीवन
रागों में छुपा है स्वास्थ्य का राज

संगीत का वैज्ञानिक प्रभाव

शास्त्रीय संगीत और योग

कैसे जानें की आप अच्छा गाना गा सकते हैं

रियाज़ कैसे करें

चमत्कार या लुप्त होती संवेदना एक लेख

भारतीय संगीत में आध्यात्मिकता स्रोत

क्या आप भी बनना चाहेंगे टीवी एंकर

वैदिक विज्ञान ने भारतीय शास्त्रीय संगीत'रागों' में चिकित्सा प्रभाव होने का दावा किया है।

संगीत का प्राणि वर्ग पर असाधारण प्रभाव

गले में सूजन, पीड़ा, खुश्की

अल्कोहल ड्रिंक्स - ये दोनों आपके गले के पक्के (पक्के मतलब वाकई पक्के) दुश्मन हैं

छुटकारा पाना है गुस्सा, तनाव से तो सुनिए राग दरबारी और भीमपलासी

जानिए कैसे संगीत से दिमाग़ तेज होता है |

एक हज़ार साल तक बजने वाली धुन

गणित के सुंदर सूत्र, जैसे कोई संगीत जैसे कोई कविता

शास्त्रीय संगीतः जातिवाद का दौर हुआ ख़त्म?

संगीत सुनना सेहत के लिए भी होता है लाभदायक, जानिए कैसे

भारतीय शास्त्रीय संगीत
हारमोनियम के गुण और दोष

निबद्ध- अनिबद्ध गान: व्याख्या, स्वरूप, भेद

संगीत से सम्बन्धित 'स्वर' के बारे में है

गायकी के 8 अंग (अष्टांग गायकी)

संस्कृत में थाट का अर्थ है मेल

ध्वनि विशेष को नाद कहते हैं

भारतीय संगीत

षडजांतर | शास्त्रीय संगीत के जाति लक्षण क्यां है

अलंकार- भारतीय शास्त्रीय संगीत

'राग' शब्द संस्कृत की 'रंज्' धातु से बना है

भारतीय परम्पराओं का पश्चिम में असर

सात स्वर, अलंकार और हारमोनियम

भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है भारतीय शास्त्रीय संगीत।

ठुमरी का नवनिर्माण

कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत में मूलभूत अंतर क्या हैं?

राग की तुलना में भाव सौंदर्य को अधिक महत्वपूर्ण ठुमरी होती है।

प्राचीन काल में तराना को स्टॉप गान के नाम से जाना जाता था

हिंदुस्तानी संगीत के घराने
कैराना का किराना घराने से नाता

गुरु-शिष्य परम्परा

रागदारी: शास्त्रीय संगीत में घरानों का मतलब

मेवाती घराने की पहचान हैं पंडित जसराज

संगीत में विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी
माइक्रोफोन के प्रकार :

माइक्रोफोन का कार्य

नई स्वरयंत्र की सूजन

ऊँची आवाज़ ख़तरनाक भी हो सकती है

टोपी पहनिए और दिमाग से तैयार कीजिए धुन

खुल जाएंगे दिमाग़ के रहस्य

मूड के मुताबिक म्यूज़िक सुनाएगा गूगल

हमारे पूज्यनीय गुरु
उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ां

ओंकारनाथ ठाकुर (1897–1967) भारत के शिक्षाशास्त्री,

बालमुरलीकृष्ण ने कर्नाटक शास्त्रीय संगीत और फिल्म संगीत

ठुमरी गायिका गिरिजा देवी हासिल कर चुकी हैं कई पुरस्कार और सम्मान

अमवा महुअवा के झूमे डरिया

उस्ताद बड़े गुलाम अली खान वाला पटियाला घराना

क्या अलग था गिरिजा देवी की गायकी में

संगीत के लिए सब छोड़ा : सोनू निगम

'संगीत के माध्यम से सेवा करता रहूंगा'

शास्त्रीय गायिका गंगूबाई

लता मंगेशकर ने क्यों नहीं की शादी?

अमिताभ को मिलना चाहिए भारत रत्न: लता

स्वर परिचय
संगीत के स्वर

स्वर मध्यम का शास्त्रीय परिचय

स्वर पञ्चम का शास्त्रीय परिचय

स्वर धैवत का शास्त्रीय परिचय

स्वर निषाद का शास्त्रीय परिचय

स्वर और उनसे सम्बद्ध श्रुतियां

सामवेद व गान्धर्ववेद में स्वर

संगीत रत्नाकर के अनुसार स्वरों के कुल, जाति

समाचार
जब हॉलैंड के राजमहल में गूंजे थे पंडित हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी से राग जोग के सुर

35 हज़ार साल पुरानी बांसुरी मिली

सुरमयी दुनिया का 'सुर-असुर' संग्राम

Search engine adsence