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वैदिक विज्ञान ने भारतीय शास्त्रीय संगीत'रागों' में चिकित्सा प्रभाव होने का दावा किया है।
प्राचीन काल से ही संगीत को बारंबार चिकित्सीय कारक के रूप में उपयोग में लाया जाता रहा है। भारत में संगीत, मधुर ध्वनि के माध्यम से एक योग प्रणाली की तरह है, जो मानव जीव पर कार्य करती है तथा आत्मज्ञान की हद के लिए उनके उचित कार्यों को जागृत तथा विकसित करती हैं, जोकि हिंदू दर्शन और धर्म का अंतिम लक्ष्य है। मधुर लय भारतीय संगीत का प्रधान तत्व है।'राग' का आधार मधुर लय है। विभिन्न'राग' केन्द्रीय तंत्रिका प्रणाली से संबंधित अनेक रोगों के इलाज में प्रभावी पाए गए हैं। चिकित्सा के रूप में संगीत के प्रयोग करने से पहले यह अवश्य पता करना चाहिए कि किस प्रकार के संगीत का उपयोग हो. संगीत चिकित्सा का सिद्धांत, सही स्वर शैली तथा संगीत के मूल तत्वों के सही प्रयोग पर निर्भर करता है। जैसे कि नोट्स [स्वर] लय, तीव्रता, ताल तथा रागों के अंश.
राग अनगिनत है तथा निश्चित रूप से प्रत्येक राग के अपने ही अनगिनत गुण हैं। यही कारण है कि हम किसी विशेष राग को किसी विशेष रोग के लिए स्थापित नहीं कर सकते हैं। विभिन्न मामलों में अलग-अलग प्रकार के रागों का प्रयोग किया जाता है। जब संगीत चिकित्सा शब्द का प्रयोग होता है तो हम चिकित्सा की विश्वव्यापी प्रणाली के बारे में सोचते हैं। इस मामले में भारतीय शास्त्रीय संगीत का गायन भाग का साहित्य पर्याप्त नहीं है। अपने अद्वितीय स्वरों/तालों की संरचना के साथ शास्त्रीय संगीत शांत और आरामदायक मनोभावना सुनिश्चित करता है और उत्तेजना पैदा करने वाली स्थितियों से जुड़ी संवेदना को शांत करता है। संगीत तथाकथित भावनात्मक असंतुलन को जीतने में एक प्रभावी भूमिका निभाता है। भारत में प्रत्येक वर्ष13 मई को संगीत चिकित्सा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
वेदों में संगीत को मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्कृष्ट साधन माना गया है। वैदिक युग में ऋग्वेद और अर्थवेद में निहित मंत्रों का प्रयोग मनुष्य की शारीरिक व्याधियों के उपचार के लिये किया जाता था। ऋषियों महर्षियों द्वारा संगीत के स्वर-तरंगों, स्वरयुक्त मंत्रोच्चारण एवं वाद्यों से उत्पन्न ध्वनियों द्वारा मानव के मानसिक एवं विभिन्न प्रकार के शारीरिक रोगों का उपचार होता रहा है।
ऋग्वेद में ‘‘गाथपति' नामक चिकित्सक का उल्लेख है जिसका तात्पर्य संगीत चिकित्सक से है।
सामवेद में, जो भारतीय संगीत का वेद माना जाता है, रोग-निवारण के लिये राग-गायन का विधान मिलता है। अथर्ववेद में ऋक, यजुष और साम के ऐसे मंत्र थे, जो जीवन से व्यवहार से और स्वास्थ्य से सम्बन्धित थे। ब्रह्मा को ऋविज् कहा जाता था जिसे चर्तुवेदों का ज्ञान होता था तथा चर्तुवेदी भी कहा जाता था। ब्रह्मा रत्न विशेषज्ञ, संगीतज्ञ एवं वैद्य सभी के गुणों को धारण करता था। यज्ञों के माध्यम से शारीरिक, मानसिक व व्यवहारिक रूप से संतुलित रखने का अवधान था। मंत्र-मणि एवं औषधि, तीनों द्वारा अथर्ववेद में उपचार बताया गया है। मंत्र-संगीत (साम) रत्न-मणी, तथा औषधि आगे चलकर आयुर्वेद का रूप धारण किया।
आयुर्वेद में देह धारण की तीन धातुयें बताई गई हैं- वात, पित्त और कफ। इनमें से किसी एक धातु में भी विकार आने से तत्सम्बन्धी रोग शरीर में होने लगते हैं। अतः इन तीनों धातुओं का सन्तुलन बनाये रखने के लिये शब्द शक्ति, मंत्र शक्ति और गीत शक्ति का भी प्रयोग होता रहा है। ऋषि-मुनियों द्वारा संगीत व मंत्र साधना ओऽम् द्वारा अनेक प्रकार की सिद्धियों व चमत्कारों पर अधिकार प्राप्त करना संगीत के प्रभाव का बोध कराता है। संगीतार्षि तुम्बरू को प्रथम संगीत चिकित्सक माना जाता है। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘संगीत-स्वरामृत' में उल्लेख किया है कि ऊँची और असमान ध्वनि का वात् पर, गम्भीर व स्थिर ध्वनि का पित्त पर तथा कोमल व मृदु ध्वनियों का कफ़ के गुणों पर प्रभाव पड़ता है। यदि सांगीतिक ध्वनियों द्वारा इन तीनों को संतुलित कर लिया जाये तो बीमारियों की सम्भावनायें ही खत्म हो जायेगी। चरक ऋषि ने संगीत के औषधीय प्रभाव का वर्णन अपने ग्रंथ में किया है। ‘शब्द-कौतुहल' ग्रंथ में भी मैंद ऋषि ने वाद्यों की ध्वनि द्वारा रोग निदान तथा श्रवण-मनन-कीर्तन से रोग निवारण की बात कही है।
‘संगीत-मकरंद' ग्रंथ में नारद द्वारा रागों की जातियों (ऑडव-षाडव-सम्पूर्ण) के आधार पर रोगी के मन और शरीर पर प्रभाव पड़ने का उल्लेख किया गया है। नारद ने ‘संगीताध्याय' के प्रकरण में विभिन्न दशाओं में रागों के गायन-वादन का निर्धारण किया है-
आयुधर्मयशोवृद्धिः धनधान्य फलम् लभेत्।
रागाभिवृद्धि सन्तानं पूर्णभगाः प्रगीयते॥
अर्थात् आयु, धर्म, यश वृद्धि, सन्तान की अभिवृद्धि, धनधान्य, फल-लाभ इत्यादि के लिये पूर्ण रागों का गायन करना चाहिये।
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में योग और संगीत का समावेश भी प्राचीन काल से है। स्वर साधना स्वयं एक यौगिक क्रिया है जिसमें मन, शरीर व प्राण तीनों में शुद्धता एवं चैतन्यता आती है। भारतीय संस्कृति में योग के साथ संगीत का गहरा रिश्ता रहा है। योग के सिद्धान्त के अनुसार श्वासों से जुड़ना अर्न्तमन से जुड़ना है और व्यक्ति जब अन्तर्मन से जुड़ जाता है तो ऋणात्मक संवेग कम हो जाता है और धनात्मक संवेग स्थायी होने लगते हैं। ये धनात्मक संवेग मनोविकारों से व्यक्ति को दूर रखते हैं।
किंवदन्ती है कि समुद्र गुप्त जब वीणा वादन करता था तो उसके उपवन में बसंत ऋतु का आभास होता था। संगीत द्वारा पेड़ पौधों को रोग-ग्रस्त होने से बचाया जा सकता है। पं0 ओम्कार नाथ ठाकुर जी ने भैरवी के प्रभाव को पौधों पर महसूस किया। विद्वानों के मत से चारूकेशी राग से धान का उत्पादन बढ़ता है। भरतनाट्यम् नृत्य फूलों के बढ़ने में सहायक है। अन्नामलाई विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्र के विशेषज्ञ डा0 टी0सी0एन0 सिंह ने ध्वनि तरंगों के प्रयोग द्वारा पौधों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि की बात स्वीकार की है। संगीत के मधुर स्वर से पौधों में प्रोटोप्लाज़्म कोष में उपस्थित क्लोरोप्लास्ट विचलित व गतिमान हो जाता है।
बहेलियों के बीन तथा सपेरे के बीन बजाने पर मृग व सर्प मोहित हो जाते हैं। कनाडा में संगीत सुनाकर अधिक दूध गायों से प्राप्त किया जाता है। पं0 ओमकार नाथ ठाकुर जी ने नाद की महत्ता को स्वीकार करते हुये कहा है कि- ‘‘मैंने नाद की मधुरता से हिंसक जानवर शेर, चीतों आदि की आँखों में कुत्ते सी मोहब्बत पलते देखी है।''
स्पष्ट है कि संगीत कला ऐसी कला है जो मन की गहराईयों को छूकर परमानन्द की प्राप्ति कराती है। यह रोगी को निरोगी और संवेदनाशून्य को संवेदनशील बनाती है। भारतीय संगीत प्रेरणा व प्राण शक्ति को पहचान कर पाश्चात्य विद्वानों की मान्यतायें भी भारतीय दर्शन की पुष्टि करने लगी हैं। संगीत के माध्यम से विभिन्न रोगों के मरीजों पर जो प्रयोग किये जा रहे हैं वे अत्यन्त चमत्कारिक एवं सम्भावनाओं से परिपूर्ण हैं।
भारतीय संगीत की प्रमुख विशिष्टता ‘रागदारी संगीत' है। राग भारतीय संगीत की आधारशिला है। इसके अर्न्तनिहित स्वर-लय, रस-भाव अपने विशिष्ट प्रभाव से व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को प्रभावित करता है। स्वर तथा लय की भिन्न-भिन्न प्रक्रिया उसकी शारीरिक क्रियाओं, रक्त संचार, मान्सपेशियों, कंठ ध्वनियों आदि में स्फूर्ति उर्जा उत्पन्न करते हैं तथा व्याधियों को दूर करते हैं।
विभिन्न रोगों के लिये संगीतज्ञों एवं संगीत चिकित्सकों तथा मनोवैज्ञानिकों ने कुछ राग निश्चित किये हैं, जो उन रोगों को दूर करने में सहायक सिद्ध हुये हैं, हो रहे हैं।
संगीताचार्य तुम्बरू ने 'संगीत स्वरामृत' में ध्वनि के विभिन्न प्रकारों को शरीर में होने वाले त्रिदोषों वात् पित्त व कफ के साथ क्या सम्बन्ध है, बताया है। यथा--उच्च स्तरौः ध्वनिरूक्षो विज्ञेयः वातजाबुधै।गम्भीरोधनशीलस्य, ज्ञातव्यः पित्तजो ध्वनीः।।स्निग्धस्य सुकुमारस्य मधुरः कफजो ध्वनीः।त्रयाणं गुण संयुक्त्तो विज्ञेयः सन्निपातजः।।8अथार्त् उच्च स्तर के रूक्ष लगने वाले ध्वनि वात के होते हैं, गम्भीर गहरे धनशीलस्य ध्वनि पित्त के होते हैं तथा स्निग्ध भाव वाले सुकुमार और मधुर ध्वनि कफ के होते हैं। इन तीनों के संतुलन के लिए विभिन्न रागो का संयोजन कर मानव की प्रवृत्ति का सही निदान व उपचार किया जाना सम्भव है। आयुर्वेद व गन्धर्व वेद के नियोजन से ही पूर्व में संगीत द्वारा रोगोपचार की प्रकृया व्यवहार में थी और इसीलिए वैद्यों के लिए संगीत का ज्ञान आवश्यक था
आजकल संगीत द्वारा बहुत सी बीमारियों का इलाज किया जाने लगा हैं|चिकित्सा विज्ञान भी यह मानने लगा हैं कि प्रतिदिन20मिनट अपनी पसंद का संगीत सुनने से रोज़मर्रा की होने वाली बहुत सी बीमारियो से निजात पायी जा सकती हैं|जिस प्रकार हर रोग का संबंध किसी नाकिसी ग्रह विशेष से होता हैं उसी प्रकार संगीत के हर सुर व राग का संबंध किसी ना किसी ग्रह से अवश्य होता हैं|यदि किसी जातक को किसी ग्रह विशेष से संबन्धित रोग हो और उसे उस ग्रह से संबन्धित राग,सुर अथवा गीत सुनाये जायें तो जातक विशेष जल्दी ही स्वस्थ हो जाता हैं|यहाँ इसी विषय को आधार बनाकर ऐसे बहुत से रोगो व उनसे राहत देने वाले रागों के विषय मे जानकारी देने का प्रयास किया गया है|जिन शास्त्रीय रागों का उल्लेख किया किया गया है उन रागो मे कोई भी गीत,संगीत,भजन या वाद्य यंत्र बजा कर लाभ प्राप्त किया जा सकता हैं|यहाँ उनसे संबन्धित फिल्मी गीतो के उदाहरण देने का प्रयास भी किया गया है|
1)हृदय रोग–इस रोग मे राग दरबारी व राग सारंग से संबन्धित संगीत सुनना लाभदायक है|इनसे संबन्धित फिल्मी गीत निम्न हैं- तोरा मन दर्पण कहलाए (काजल),राधिके तूने बंसरी चुराई (बेटी बेटे ),झनक झनक तोरी बाजे पायलिया ( मेरे हुज़ूर ),बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम (साजन),जादूगर सइयां छोड़ मोरी (फाल्गुन),ओ दुनिया के रखवाले (बैजू बावरा ),मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये (मुगले आजम )
2)अनिद्रा–यह रोग हमारे जीवन मे होने वाले सबसे साधारण रोगों में से एक है|इस रोग के होने पर राग भैरवी व राग सोहनी सुनना लाभकारी होता है,जिनके प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं1)रात भर उनकी याद आती रही(गमन), 2)नाचे मन मोरा (कोहिनूर), 3)मीठे बोल बोले बोले पायलिया(सितारा), 4)तू गंगा की मौज मैं यमुना (बैजु बावरा), 5)ऋतु बसंत आई पवन(झनक झनक पायल बाजे), 6)सावरे सावरे(अंनुराधा), 7)चिंगारी कोई भड़के (अमर प्रेम),छम छम बजे रे पायलिया (घूँघट ),झूमती चली हवा (संगीत सम्राट तानसेन ),कुहूु कुहू बोले कोयलिया (सुवर्ण सुंदरी )
3)एसिडिटी–इस रोग के होने पर राग खमाज सुनने से लाभ मिलता है|इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं1)ओ रब्बा कोई तो बताए प्यार (संगीत), 2)आयो कहाँ से घनश्याम(बुड्ढा मिल गया), 3)छूकर मेरे मन को (याराना), 4)कैसे बीते दिन कैसे बीती रतिया (ठुमरी-अनुराधा), 5)तकदीर का फसाना गाकर किसे सुनाये ( सेहरा ),रहते थे कभी जिनके दिल मे (ममता ),हमने तुमसे प्यार किया हैं इतना (दूल्हा दुल्हन ),तुम कमसिन हो नादां हो (आई मिलन की बेला)
4)कमजोरी–यह रोग शारीरिक शक्तिहीनता से संबन्धित है|इस रोग से पीड़ित व्यक्ति कुछ भी काम कर पाने मे खुद को असमर्थ महसूस करता है|इस रोग के होने पर राग जय जयवंती सुनना या गाना लाभदायक होता है|इस राग के प्रमुख गीत निम्न हैं मनमोहना बड़े झूठे(सीमा), 2)बैरन नींद ना आए (चाचा ज़िंदाबाद), 3)मोहब्बत की राहों मे चलना संभलके (उड़न खटोला ), 4)साज हो तुम आवाज़ हूँ मैं (चन्द्रगुप्त ), 5)ज़िंदगी आज मेरे नाम से शर्माती हैं (दिल दिया दर्द लिया ),तुम्हें जो भी देख लेगा किसी का ना (बीस साल बाद )
5)याददाश्त–जिन लोगों की याददाश्त कम हो या कम हो रही हो,उन्हे राग शिवरंजनी सुनने से बहुत लाभ मिलता है|इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं,ना किसी की आँख का नूर हूँ(लालकिला), 2)मेरे नैना(महबूबा), 3)दिल के झरोखे मे तुझको(ब्रह्मचारी), 4)ओ मेरे सनम ओ मेरे सनम(संगम ), 5)जीता था जिसके (दिलवाले), 6)जाने कहाँ गए वो दिन(मेरा नाम जोकर )
6)खून की कमी–इस रोग से पीड़ित होने पर व्यक्ति का चेहरा निस्तेज व सूखा सा रहता है|स्वभाव में भी चिड़चिड़ापन होता है|ऐसे में राग पीलू से संबन्धित गीत सुनने से लाभ पाया जा सकता हैं| 1)आज सोचा तो आँसू भर आए (हँसते जख्म), 2)नदिया किनारे (अभिमान), 3)खाली हाथ शाम आई है (इजाजत), 4)तेरे बिन सूने नयन हमारे (लता रफी), 5)मैंने रंग ली आज चुनरिया (दुल्हन एक रात की), 6)मोरे सैयाजी उतरेंगे पार(उड़न खटोला),
7)मनोरोग अथवा डिप्रेसन–इस रोग मे राग बिहाग व राग मधुवंती सुनना लाभदायक होता है|इन रागों के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं| 1)तुझे देने को मेरे पास कुछ नहीं(कुदरत नई), 2)तेरे प्यार मे दिलदार(मेरे महबूब), 3)पिया बावरी(खूबसूरत पुरानी), 4)दिल जो ना कह सका (भीगी रात),तुम तो प्यार हो(सेहरा),मेरे सुर और तेरे गीत (गूंज उठी शहनाई ),मतवारी नार ठुमक ठुमक चली जाये(आम्रपाली),सखी रे मेरा तन उलझे मन डोले (चित्रलेखा)
8)रक्तचाप-ऊंचे रक्तचाप मे धीमी गति और निम्न रक्तचाप मे तीव्र गति का गीत संगीत लाभ देता है|शास्त्रीय रागों मे राग भूपाली को विलंबित व तीव्र गति से सुना या गाया जा सकता है|ऊंचे रक्तचाप मे“चल उडजा रे पंछी कि अब ये देश (भाभी),ज्योति कलश छलके (भाभी की चूड़ियाँ ),चलो दिलदार चलो (पाकीजा ),नीले गगन के तले (हमराज़) जैसे गीत व निम्न रक्तचाप मे“ओ नींद ना मुझको आए (पोस्ट बॉक्स न॰909),बेगानी शादी मे अब्दुल्ला दीवाना (जिस देश मे गंगा बहती हैं ),जहां डाल डाल पर ( सिकंदरे आजम ),पंख होते तो उड़आती रे (सेहरा )|
[9)अस्थमा–इस रोग मे आस्था–भक्ति पर आधारित गीत संगीत सुनने व गाने से लाभ होता है|राग मालकोस व राग ललित से संबन्धित गीत इस रोग मे सुने जा सकते हैं|जिनमें प्रमुख गीत निम्न हैं तू छुपी हैं कहाँ (नवरंग),तू है मेरा प्रेम देवता(कल्पना),एक शहँशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल (लीडर),मन तड़पत हरी दर्शन को आज (बैजू बावरा ),आधा है चंद्रमा ( नवरंग )
10)सिरदर्द–इस रोग के होने पर राग भैरव सुनना लाभदायक होता है|इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं - मोहे भूल गए सावरियाँ (बैजू बावरा),राम तेरी गंगा मैली (शीर्षक),पूंछों ना कैसे मैंने रैन बिताई(तेरी सूरत मेरी आँखें),सोलह बरस की बाली उमर को सलाम (एक दूजे के लिए )आदि:
राग परिचय
कैराना का किराना घराने से नाता |
गुरु-शिष्य परम्परा |
रागदारी: शास्त्रीय संगीत में घरानों का मतलब |
मेवाती घराने की पहचान हैं पंडित जसराज |
जब हॉलैंड के राजमहल में गूंजे थे पंडित हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी से राग जोग के सुर |
35 हज़ार साल पुरानी बांसुरी मिली |
सुरमयी दुनिया का 'सुर-असुर' संग्राम |