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मधमाद सारंग
राग मधुमाद सारंग को मधमाद सारंग या मध्यमादी सारंग भी कहा जाता है। इस राग के स्वर राग बृंदावनी सारंग के ही सामान है परन्तु इस राग में सिर्फ कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है। इस राग के पूर्वांग में पंचम-रिषभ (प-रे) तथा उत्तरांग में निषाद-पंचम (नि१-प) की संगती राग वाचक है।
राग मधुमाद सारंग और राग मेघ मल्हार के आरोह अवरोह एक जैसे दिखाई पडते हैं। परंतु मेघ मल्हार में मल्हार का अंग प्रमुख रूप से दिखाया जाता है। जबकि मधुमाद सारंग में सारंग का अंग दिखाया जाता है। इस राग का विस्तार मध्य और तार सप्तक में किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग मधुमाद सारंग का रूप दर्शाती हैं -
,नि१ सा रे म प ; रे म रे ; नि१ प म रे ; म रे सा रे ,नि१ सा; रे म प; नि१ प म रे ; ,नि१ सा रे सा; म प नि१ सा' ; सा' नि१ प म प; प रे म रे ; नि१ प म रे सा;
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