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सोहनी
यह उत्तरांग प्रधान राग है। इसका विस्तार तार सप्तक में अधिक होता है। यदि इस राग का मंद्र सप्तक में विस्तार किया गया तो राग पूरिया दिखने लगता है और यदि रिषभ और धैवत को प्रबल करके मध्य सप्तक में गाएं तो राग मारवा दिखने लगता है।
तार षडज इस राग का प्राण स्वर है। ग म् ध नि सा' रे१' सा' ; नि ध नि ध म् ग - यह राग वाचक स्वर संगति है जिससे राग स्पष्ट दिखने लगता है। म् म् ग ; नि नि ध ; म्' म्' ग' ; म्' ग' रे१' सा' ; सा' नि ध नि ध म् ग ; ग म् ध ; ग म् ग रे१ सा ; ग म् ध नि सा' - यह स्वर संगतियाँ तीव्र मध्यम और शुद्ध निषाद के षडज मध्यम भाव को ऐसा मधुर बनाती हैं कि राग रूप में गायक, वादक व श्रोता अपना अस्तित्व भूलकर स्वर साक्षात्कार का दिव्य अनुभव लेते हैं।
इस राग की व्रुत्ति तेजस्वी और विलासी है तथा प्रक्रुति चंचल है। यह स्वर संगतियाँ राग सोहनी का रूप दर्शाती हैं -
सा ग ग म् ; म् म् ग ; नि नि ध ; म् म् ग ; सा ग म् ; सा म् ग ; म् ध नि ; म् नि ध ; म् ध ग ; म् ग म् ध नि ध सा' ; सा' नि ध नि ध ; म् ग म् ध ग म् ग रे१ सा ; सा ग म् ध नि ; म् नि ध ग म् ग ; म् ध नि सा' ; ध नि सा' ; ध नि सा' नि सा' रे१' सा' ; सा' रे१' सा' नि सा' ; नि ध सा' नि नि ध नि ध ; सा' ध म ग ; म् ध नि सा';
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