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कुछ रागों की प्रकृति इस प्रकार उल्लेखित है-
बागेश्री- विरहोत्कंठिता नारी का सजीव चित्रण
गुणक्री -वासक सज्जा नायिका
तोड़ी - विरह दग्धा, विरहिणी
ललित- खंडिता नारी (वियोग श्रृंगार)
रागेश्री- विप्रलब्धा
बहार- उत्साही युवक
जोगिया - वेदना, करूणा से भरी स्त्री
सोहनी- आवेश युक्त प्रेम कलह से उग्र
भैरवी - अनेक रंग, भक्ति, करूणा, विरह, खुशी।
दरबारी - प्रौढ़, गम्भीर, राजसी व्यक्तित्व वाला
अड़ाना - चंचल, उत्साही युवक
मारवा- वेदना ग्रस्त पुरूष
मालकौंस- शान्त, सौम्य
हिंडोल -आवेश युक्त, उग्र, उदभट
खमाज -अनेक रूप, नखरीली, नार, मदमाती, वियोगिनी, विरहदग्धा।
इन रागों की प्रकृति-स्वभाव-रस के आधार पर ही इनका उपचारी रूप निर्भर करता है। राग विविध मनोदशाओं के द्योतक होते हैं और इसी कारण अपनी रस-भाव दशा के अनुरूप व्यक्ति व श्रोता में रसानुभूति का संचार कराने में सार्थक व सक्षम होते है।अनेक राग रोगो को दूर करने में सहायक सिद्ध हुये हैं। जैसे - भैरव कफ के रोगियों को लाभ पहुंचाता है। मल्हार, सोरठ व जयजयवन्ती शारीरिक उर्जा को बढ़ाते हैं, क्रोध शान्त करते हैं। राग आसावरी रक्त, कफ आदि रोगों को दूर करता है। भैरवी श्वास, दमा, सर्दी, एनफ्लुएंजा, क्षय रोग आदि को दूर करने में सहायक है। वात्, पित्त व कफ प्रकृति पर प्रभाव डालने वाले रागों का उल्लेख इस प्रकार है -30
राग का नाम रस/प्रकृति रागों मं सहायक
1. बिहाग करूण/गम्भीर कफ जन्य रोगों को यमन करूण/अर्द्धगम्भीर दूर करता है।
2. भैरव शांत/गम्भीर आसावरी श्रृंगार/गम्भीर पित्त जनित रोगों भीमपलासी वीर/गम्भीर को दूर करता है।
बागेश्री श्रृंगार/गम्भीर
जौनपुरी श्रृंगार/अर्द्धगम्भीर
3. वृन्दावनी सारंग अर्द्धगम्भीर
कामोद अर्द्धगम्भीर त्रिदोषक रोगों
तिलक कामोद श्रृंगार/चंचल का शमन करता है।
राम कली अर्द्धगम्भीर वात् पित्त एवं
जयजयवन्ती श्रृंगार/करूण कफ तीनों में।
दरबारी कान्हरा गम्भीर
4. अल्हैयाबिलावल अर्द्धगम्भीर
हमीर उत्साह/अर्द्धगम्भीर
तिलंग श्रृंगार/चंचल कफ जन्य रोगों
देशकार श्रृंगार/चंचल का शमन
पूर्वी भक्ति/अर्द्धगम्भीर करते है।
शंकरा भक्ति/गम्भीर
सेहनी भक्ति/अर्द्धगम्भीर
5. पटदीप गम्भीर पित्तज तथा वातज
मुल्तानी श्रृंगार/करूण रोगों का शमन
अड़ाना श्रृंगार/चंचल करता है।
6. बहार श्रृंगार/चंचल पित्त जनित
तोड़ी श्रृंगार/विरह रोगों का
मारवा श्रृंगार/विरह शमन करता है।
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