भारतीय परम्पराओं का पश्चिम में असर
Submitted by Anand on 6 May 2022 - 10:15pmभारतीय परम्पराओं का पश्चिम में असर Read More : भारतीय परम्पराओं का पश्चिम में असर about भारतीय परम्पराओं का पश्चिम में असर
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भारतीय शास्त्रीय संगीत के अंतर्गत दो प्रकार के संगीत आते हैं|
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत उत्तर भारत से जुड़ा हुआ है और कर्नाटक दक्षिण भारत से|
ये दोनो ही प्रकार के संगीत सामवेद से उत्पन्न हुए हैं| प्राचीन समय में भारत में सिर्फ़ एक ही प्रकार का संगीत प्रचलित था| Read More : कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत में मूलभूत अंतर क्या हैं? about कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत में मूलभूत अंतर क्या हैं?
भारत में शास्त्रीय संगीत की परंपरा बड़ी प्राचीन है। राग के प्रादुर्भाव के पूर्व जाति गान की परंपरा थी जो वैदिक परंपरा का ही भेद था। जाति गान के बारे में मतंग मुनि कहते हैं –
“श्रुतिग्रहस्वरादिसमूहाज्जायन्त इति जातय:”
अर्थात् – श्रुति और ग्रह- स्वरादि के समूह से जो जन्म पाती है उन्हें ‘जाति’ कहा है। Read More : षडजांतर | शास्त्रीय संगीत के जाति लक्षण क्यां है about षडजांतर | शास्त्रीय संगीत के जाति लक्षण क्यां है
कुछ विशेष नियमो से बँधे हुए स्वर-समुदाय को अलंकार या पल्टा कहते है । Read More : अलंकार- भारतीय शास्त्रीय संगीत about अलंकार- भारतीय शास्त्रीय संगीत
ठुमरी- ठुमरी गीत का वह प्रकार है जिसमें राग की शुद्धता की तुलना में भाव और सौंदर्य को अधिक महत्व दिया जाता है। इसकी प्रकृति चपल और द्रुत होती है। इसमें शब्द कम होते हैं और शब्दों का भाव विविध स्वर -समूहों द्वारा व्यक्त किया जाता है। ठुमरी श्रृंगार रस प्रधान होती है। इसमें मींड़ और कण का विशेष प्रयोग होता है।
ठुमरी का एक और प्रकार है जो शब्द और लय प्रधान है। इसके शब्द अनुप्रास युक्त होते हैं, जैसे छाई छटा, तरसे लरजे, जिया पिया बिना इत्यादि ।
इस ठुमरी में वियोग व्यथा की पराकाष्ठा का अनुमान कीजिये।
स्थाई:- पपीहा पी की बोली न बोल। Read More : राग की तुलना में भाव सौंदर्य को अधिक महत्वपूर्ण ठुमरी होती है। about राग की तुलना में भाव सौंदर्य को अधिक महत्वपूर्ण ठुमरी होती है।
निबद्ध – अनिबद्ध की व्याख्या प्राचीन ग्रंथों से लेकर आधुनिक काल तक होती रही है। निबद्ध -अनिबद्ध विशेषण हैं और ‘गान’ संज्ञा है जिसमें ये दोनों विशेषण लगाए जाते हैं। निबद्ध – अनिबद्ध का सामान्य अर्थ ही है ‘बँधा हुआ’ और ‘न बँधा हुआ’, अर्थात् संगीत में जो गान ताल के सहारे चले वह निबद्ध और जो उस गान की पूर्वयोजना का आधार तैयार करे वह अनिबद्ध गान के अन्तर्गत माना जा सकता है। वैसे निबद्ध के साथ आलप्ति और अनिबद्ध के साथ लय का काम किया जाता रहा है। Read More : निबद्ध- अनिबद्ध गान: व्याख्या, स्वरूप, भेद about निबद्ध- अनिबद्ध गान: व्याख्या, स्वरूप, भेद
संगीत में वह शब्द जिसका कोई निश्चित रूप हो और जिसकी कोमलता या तीव्रता अथवा उतार-चढ़ाव आदि का, सुनते ही, सहज में अनुमान हो सके, स्वर कहलाता है। भारतीय संगीत में सात स्वर (notes of the scale) हैं, जिनके नाम हैं - षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत व निषाद।
यों तो स्वरों की कोई संख्या बतलाई ही नहीं जा सकती, परंतु फिर भी सुविधा के लिये सभी देशों और सभी कालों में सात स्वर नियत किए गए हैं। भारत में इन सातों स्वरों के नाम क्रम से षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद रखे गए हैं जिनके संक्षिप्त रूप सा, रे ग, म, प, ध और नि हैं।
Read More : संगीत से सम्बन्धित 'स्वर' के बारे में है about संगीत से सम्बन्धित 'स्वर' के बारे में है
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35 हज़ार साल पुरानी बांसुरी मिली |
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