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बिलासखानी तोडी
यह राग, भैरवी थाट से उत्पन्न होता है। यह राग मियाँ तानसेन के पुत्र बिलास खान ने बनाया था और उनके ही नाम से प्रचलित है। इसके पास के राग भैरवी और कोमल रिषभ आसावरी हैं। इसका चलन तोडी के समान होने से इसमें गंधार तोडी के ही समान अति कोमल लगाना चाहिये। इस राग में पंचम न्यास स्वर है, परन्तु अवरोह में इसको छोड़ा जाता है, जैसे सा रे१ ग१ प ; प ध१ प ; प ध१ नि१ ध१ म ग१ रे१ ; रे१ ग१ रे१ सा।
इस राग में निषाद आरोह में वर्ज्य है परन्तु इसे कभी कभी अनुवादी स्वर के रूप में प्रयुक्त किया जाता है जैसे - रे१' नि१ सा रे१' ग१' या रे१ ,नि१ सा रे१। अवरोह में षड्ज (सा) को प्रायः नही लगाते जैसे - सा' रे१' नि१ ध१ ; ध१ सा' रे१' ग१' रे१' नि१ ध१ ग१ प ध१ म ग१ रे१ ; ग१ रे१ ,नि१ ,ध१ सा।
यह राग बहुत मधुर है लेकिन गाने में कठिन है। यह एक मींड प्रधान राग है। इस राग को तीनों सप्तकों में गाया जा सकता है। इस राग की प्रकृति शांत और गंभीर है। यह स्वर संगतियाँ राग बिलासखानी तोडी का रूप दर्शाती हैं -
सा रे१ ग१ प ; ध१ म ग१ रे१ ; ग१ रे१ ग१ ; रे१ ,नि१ ,ध१ सा ; सा रे१ ग१ प; ध१ नि१ ध१ ; ग१ प ध१ सा' ; सा' रे१' नि१ ध१ ; ध१ म ग१ रे१ ग१ रे१ सा ;
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