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मल्हार
संगीत सम्राट तानसेन द्वारा अविष्क्रुत इस राग का मौसमी रागों में प्रमुख स्थान है। वर्षा ऋतु में जाया जाने वाला यह राग मियाँ मल्हार भी कहलाता है। इसके अवरोह में दोनों निषाद साथ साथ भी लेते हैं, जिसमें पहले कोमल निषाद को धैवत से वक्र करके बाद में शुद्ध निषाद का प्रयोग करते हैं जैसे - प नि१ ध नि सा'। मींड में कोमल निषाद से शुद्ध निषाद लगाकर षड्ज तक पहुँचा जा सकता है। अवरोह में कोमल निषाद का ही प्रयोग होता है।
यह पूर्वांग प्रधान राग है और विशेषतया मंद्र सप्तक में तथा मध्य सप्तक के पूर्वांग में विशेष खिलता है। यह गंभीर प्रक्रुति का राग है। करुण व वियोग श्रंगार की अनुभूति इसमें होती है। यह स्वर संगतियाँ राग मल्हार का रूप दर्शाती हैं -
,नि सा ; ,नि१ ,ध ; ,नि ; ,म ,प ; ,नि१ ,ध; ,नि ,नि सा ; ,नि ; रे रे सा ; रे ,ध ,नि१ ,प ; ,नि१ ,ध ; नि सा ;
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