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सूरदासी मल्हार
राग सूरदासी-मल्हार में सारंग अंग और मल्हार अंग का मिश्रण है। आरोह में सारंग अंग जैसे - सा रे म प नि सा' के साथ मल्हार अंग इस तरह से दिखाया जाता है - म रे प ; म प नि१ नि सा'। अवरोह में धैवत स्वर का एक महत्वपूर्ण स्थान है जो सारंग अंग को अलग करता है जैसे - सा' नि१ ध प ; म रे प ; म ध प ; नि१ ध प ; म रे नि सा।
यह एक उत्तरांग प्रधान राग है। इस राग का चलन तार षड्ज (सा') के आस पास अधिक होता है। मल्हार के अन्य प्रकारों से यह राग कम गंभीर है। वर्षा ऋतु का राग होने के कारण इस राग की बंदिशों में मुख्यतया वर्षा ऋतू का वर्णन पाया जाता है। यह स्वर संगतियाँ राग सूरदासी-मल्हार का रूप दर्शाती हैं -
म रे ,नि सा ; सा' ; नि१ ध म प नि१ ध प ; म रे ; (म)रे (म)रे प ; म ध प (म)रे सा ; रे म प नि१ ध प ; म प नि१ नि सा' ; सा' नि१ ध प म ध प ; नि१ ध प ; म रे ,नि सा ;
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