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मधुकौंस
राग मधुकौंस अपेक्षाकृत नया राग है और अत्यंत प्रभावशाली वातावरण बनाने के कारण, कम समय में ही पर्याप्त प्रचलन में आ गया है। गंधार कोमल से मध्यम तीव्र का लगाव, इस राग में व्यग्रता का वातावरण पैदा करता है जो विरहणी की व्यग्रता को दर्शाता हुआ प्रतीत होता है। इसलिए इस राग में विरह रस की बंदिशें अधिक उपयक्त होती हैं। यह मींड प्रधान राग है। गुणीजन इस राग को राग मधुवंती और राग मालकौंस का मिश्रण मानते हैं। सा ग१ म् प - इन स्वरों से मधुवंती का स्वरुप दिखता है और गंधार कोमल से षड्ज पर आते समय गंधार कोमल को दीर्घ रख कर मींड के साथ षड्ज पर आते हैं जिसमें कौंस का रागांग झलकता है।
इस राग का तीनों सप्तकों में स्वतंत्रता पूर्वक विस्तार किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग मधुकौंस का रूप दर्शाती हैं -
सा ग१ सा ; ग१ म् ग१ सा ; सा ग१ म् प ; म् प ग१ म् ग ; ग१ म् प नि१ प ; नि१ म् प ; प म् ग१ म् ग१ सा ; ग१ म् प नि१ सा' ; नि१ ग१' सा' ; ग१' नि१ सा' ; सा' नि१ प म् ; प म् ग१ म् प नि१ प ; नि१ म् प ग१ म् ग१ ; म् ग१ सा ;
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राग परिचय
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