गायकी के 8 अंग (अष्टांग गायकी)

गायकी के 8 अंग (अष्टांग गायकी)

वातावरण पर प्रभाव डालने के लिये राग मे गायन, वादन के अविभाज्य 8 अंगों का प्रयोग होना चाहिये। ये 8 अंग या अष्टांग इस प्रकार हैं - स्वर, गीत, ताल और लय, आलाप, तान, मींड, गमक एवं बोलआलाप और बोलतान। उपर्युक्त 8 अंगों के समुचित प्रयोग के द्वारा ही राग को सजाया जाता है।

1. स्वर -

स्वर एक निश्चित ऊँचाई की आवाज़ का नाम है। यह कर्ण मधुर आनंददायी होती है। जिसमें स्थिरता होनी चाहिये, जिसे कुछ देर सुनने पर मन में आनंद की लहर पैदा होनी चाहिये। यह अनुभूति की वस्तु है। सा, रे, ग, म, प, ध और नि जिन्हें क्रमश: षडज, ऋषभ, गंधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद के नाम से ग्रंथों में वर्णित किया गया है। 12 स्वरों के नाम इस प्रकार हैं - सा, रे कोमल, रे शुद्ध, ग कोमल, ग शुद्ध, म शुद्ध, म तीव्र, पंचम, ध कोमल, ध शुद्ध, नि कोमल और नि शुद्ध।

2. गीत, बंदिश -

बंदिश, परम आकर्षक सरस स्वर में डूबी हुई, भावना प्रधान एवं अर्थ को सुस्पष्ट करने वाली होनी चाहिये। गायक के कंठ द्वारा अपने सत्य रूप में अभिव्यक्त होने चाहिये गीत।

3. ताल -

ताल एक निश्चित मात्राओं मे बंधा और उसमे उपयोग में आने वाले बोलों के निश्चित् वज़न को कहते हैं। मात्रा (beat) किसी भी ताल के न्यूनतम अवयव को कहते हैं। हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली में विभिन्न तालों का प्रयोग किया जाता है। जैसे, एकताल, त्रिताल (तीनताल), झपताल, केहरवा, दादरा, झूमरा, तिलवाड़ा, दीपचंदी, चांचर, चौताल, आडा-चौताल, रूपक, चंद्रक्रीड़ा, सवारी, पंजाबी, धुमाली, धमार इत्यादि।

4. आलाप अथवा बेहेलावे -

आकार में स्वर की ताकत और आवश्यक भाव धारा बहाने के लिये, धीमी गति से, ह्रदयवेधी ढंग से, जो राग स्वरों के छोटे-छोटे स्वर समूह, रुकते हुए लिये जाते हैं वे ही आलाप हैं। मींड प्रधान सरस स्वर योजना ही आलाप का आधार है।

5. तान -

राग के स्वरों को तरंग या लहर के समान, न रुकते हुए, न ठिठकते हुए सरस लयपूर्ण स्वर योजनाएं तरंगित की जाती हैं वे हैं तानें। मोती के दाने के समान एक-एक स्वर का दाना सुस्पष्ट और आकर्षक होना चाहिये, तभी तान का अंग सही माना जाता है।

6. मींड -

मींड का अर्थ होता है घर्षण, घसीट। किसी भी स्वर से आवाज़ को न तोडते हुए दूसरे स्वर तक घसीटते हुए ले जाने कि क्रिया को मींड कहते हैं। सुलझे हुए मस्तिष्क और स्वर संस्कारित कंठ की चरम अवस्था होने पर ही मींड कंठ द्वारा तय होती है।

7. गमक -

मींड के स्वरों के साथ आवश्यक स्वर को उसके पिछले स्वर से धक्का देना पड़ता है ऐसी क्रिया को गमक कहते हैं।

8. बोल-आलाप बोल-तान -

आलाप तानों में लय के प्रकारों के साथ रसभंग न होते हुए भावानुकूल अर्थानुकूल गीत की शब्दावली कहना ही बोल-आलाप बोल-तान की अपनी विशेषता है।

 

 

 

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